ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
श्रीपुराणपुरुषोत्तमाय नमः
श्रीगणेशाय नमः
श्रीशिवपुराण
द्वितीय भाग : रुद्रसंहिता
कथा-क्रम
- द्वितीय भाग : रुद्रसंहिता
- प्रथम (सृष्टि) खण्ड
- ऋषियों के प्रश्न के उत्तर में नारद-ब्रह्म-संवाद की अवतारणा करते हुए सूतजी का उन्हें नारदमोह का प्रसंग सुनाना; कामविजय के गर्व से युक्त हुए नारद का शिव, ब्रह्मा तथा विष्णु के पास जाकर अपने तप का प्रभाव बताना
- मायानिर्मित नगर में शीलनिधि की कन्यापर मोहित हुए नारदजी का भगवान् विष्णु से उनका रूप माँगना, भगवान् का अपने रूप के साथ उन्हें वानर का-सा मुँह देना, कन्या का भगवान् को वरण करना और कुपित हुए नारद का शिवगणों को शाप देना
- नारदजी का भगवान् विष्णु को क्रोधपूर्वक फटकारना और शाप देना; फिर माया के दूर हो जाने पर पश्चात्तापपूर्वक भगवान् के चरणों में गिरना और शुद्धि का उपाय पूछना तथा भगवान् विष्णु का उन्हें समझा-बुझाकर शिव का माहात्म्य जानने के लिये ब्रह्माजी के पास जाने का आदेश और शिव के भजन का उपदेश देना
- नारदजी का शिवतीर्थों में भ्रमण, शिवगणों को शापोद्धार की बात बताना तथा ब्रह्मलोक में जाकर ब्रह्माजी से शिवतत्त्व के विषय में प्रश्न करना
- महाप्रलयकाल में केवल सद्ब्रह्म की सत्ता का प्रतिपादन, उस निर्गुण-निराकार ब्रह्म से ईश्वरमूर्ति (सदाशिव) का प्राकट्य, सदाशिव द्वारा स्वरूपभूता शक्ति (अम्बिका) का प्रकटीकरण, उन दोनों के द्वारा उत्तम क्षेत्र (काशी या आनन्दवन) का प्रादुर्भाव, शिव के वामांग से परम पुरुष (विष्णु) का आविर्भाव तथा उनके सकाश से प्राकृत तत्त्वों की क्रमश: उत्पत्ति का वर्णन
- भगवान् विष्णु की नाभि से कमल का प्रादुर्भाव, शिवेच्छावश ब्रह्माजी का उससे प्रकट होना, कमलनाल के उद्गम का पता लगाने में असमर्थ ब्रह्मा का तप करना, श्रीहरि का उन्हें दर्शन देना, विवादग्रस्त ब्रह्मा-विष्णु के बीच में अग्नि-स्तम्भ का प्रकट होना तथा उसके ओर-छोर का पता न पाकर उन दोनों का उसे प्रणाम करना
- ब्रह्मा और विष्णु को भगवान् शिव के शब्दमय शरीर का दर्शन
- उमा सहित भगवान् शिव का प्राकट्य, उनके द्वारा अपने स्वरूप का विवेचन तथा ब्रह्मा आदि तीनों देवताओं की एकता का प्रतिपादन
- श्रीहरि को सृष्टि की रक्षा का भार एवं भोग-मोक्ष-दान का अधिकार दे शिव का अन्तर्धान होना
- शिवपूजन की विधि तथा उसका फल
- भगवान् शिव की श्रेष्ठता तथा उनके पूजन की अनिवार्य आवश्यकता का प्रतिपादन
- शिवपूजन की सर्वोत्तम विधि का वर्णन
- विभिन्न पुष्पों, अन्नों तथा जलादि की धाराओं से शिवजी की पूजा का माहात्म्य
- सृष्टि का वर्णन
- स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की, ऋषियों की तथा दक्षकन्याओं की संतानों का वर्णन तथा सती और शिव की महत्ता का प्रतिपादन
- यज्ञदत्तकुमार को भगवान् शिव की कृपा से कुबेरपद की प्राप्ति तथा उनकी भगवान् शिव के साथ मैत्री
- भगवान् शिव का कैलास पर्वत पर गमन तथा सृष्टिखण्ड का उपसंहार
- द्वितीय (सती) खण्ड
- नारदजी के प्रश्न और ब्रह्माजी के द्वारा उनका उत्तर, सदाशिव से त्रिदेवों की उत्पत्ति तथा ब्रह्माजी से देवता आदि की सृष्टि के पश्चात् एक नारी और एक पुरुष का प्राकट्य
- कामदेव के नामों का निर्देश, उसका रति के साथ विवाह तथा कुमारी संध्या का चरित्र - वसिष्ठ मुनि का चन्द्रभाग पर्वत पर उसको तपस्या की विधि बताना
- संध्या की तपस्या, उसके द्वारा भगवान् शिव की स्तुति तथा उससे संतुष्ट हुए शिव का उसे अभीष्ट वर दे मेधातिथि के यज्ञ में भेजना
- संध्या की आत्माहुति, उसका अरुन्धती के रूप में अवतीर्ण होकर मुनिवर वसिष्ठ के साथ विवाह करना, ब्रह्माजी का रुद्र के विवाह के लिये प्रयत्न और चिन्ता तथा भगवान् विष्णु का उन्हें 'शिवा' की आराधना के लिये उपदेश देकर चिन्तामुक्त करना
- दक्ष की तपस्या और देवी शिवा का उन्हें वरदान देना
- ब्रह्माजी की आज्ञा से दक्ष द्वारा मैथुनी सृष्टि का आरम्भ, अपने पुत्र हर्यश्वों और शबलाश्वों को निवृत्तिमार्ग में भेजने के कारण दक्ष का नारद को शाप देना
- दक्ष की साठ कन्याओं का विवाह, दक्ष और वीरिणी के यहाँ देवी शिवा का अवतार, दक्ष द्वारा उनकी स्तुति तथा सती के सद्गुणों एवं चेष्टाओं से माता-पिता की प्रसन्नता
- सती की तपस्या से संतुष्ट देवताओं का कैलास में जाकर भगवान् शिव का स्तवन करना
- ब्रह्माजी का रुद्रदेव से सती के साथ विवाह करने का अनुरोध, श्रीविष्णु द्वारा अनुमोदन और श्रीरुद्र की इसके लिये स्वीकृति
- सती को शिव से वर की प्राप्ति तथा भगवान् शिव का ब्रह्माजी को दक्ष के पास भेजकर सती का वरण करना
- ब्रह्माजी से दक्ष की अनुमति पाकर देवताओं और मुनियों सहित भगवान् शिव का दक्ष के घर जाना, दक्ष द्वारा सबका सत्कार तथा सती और शिव का विवाह
- सती और शिव के द्वारा अग्नि की परिक्रमा, श्रीहरि द्वारा शिवतत्त्व का वर्णन, शिव का ब्रह्माजी को दिये हुए वर के अनुसार वेदी पर सदा के लिये अवस्थान तथा शिव और सती का विदा हो कैलास पर जाना
- सतीका प्रश्न तथा उसके उत्तर में भगवान् शिव द्वारा ज्ञान एवं नवधा भक्ति के स्वरूप का विवेचन
- दण्डकारण्य में शिव को श्रीराम के प्रति मस्तक झुकाते देख सती का मोह तथा शिव की आज्ञा से उनके द्वारा श्रीराम की परीक्षा
- श्रीशिव के द्वारा गोलोकधाममें श्रीविष्णुका गोपेशके पदपर अभिषेक तथा उनके प्रति प्रणामका प्रसंग सुनाकर श्रीरामका सतीके मनका संदेह करना सतीका शिवके द्वारा मानसिक त्याग
- प्रयाग में समस्त महात्मा मुनियोंद्वारा किये गये यज्ञ में दक्ष का भगवान् शिव को तिरस्कारपूर्वक शाप देना तथा नन्दी द्वारा ब्राह्मणकुल को शाप-प्रदान, भगवान् शिव का नन्दी को शान्त करना
- दक्ष के द्वारा महान् यज्ञ का आयोजन, उसमें ब्रह्मा, विष्णु, देवताओं और ऋषियों का आगमन, दक्ष द्वारा सबका सत्कार, यज्ञ का आरम्भ, दधीचि द्वारा भगवान् शिव को बुलाने का अनुरोध और दक्ष के विरोध करने पर शिव-भक्तों का वहाँ से निकल जाना
- दक्षयज्ञ का समाचार पा सती का शिव से वहाँ चलने के लिये अनुरोध, दक्ष के शिवद्रोह को जानकर भगवान् शिव की आज्ञा से देवी सती का पिता के यज्ञमण्डप की ओर शिवगणों के साथ प्रस्थान
- यज्ञशाला में शिव का भाग न देखकर सती के रोषपूर्ण वचन, दक्ष द्वारा शिव की निन्दा सुन दक्ष तथा देवताओं को धिक्कार-फटकार कर सती द्वारा अपने प्राण-त्याग का निश्चय
- सती का योगाग्नि से अपने शरीर को भस्म कर देना, दर्शकों का हाहाकार, शिवपार्षदों का प्राणत्याग तथा दक्ष पर आक्रमण, ऋभुओं द्वारा उनका भगाया जाना तथा देवताओं की चिन्ता
- आकाशवाणी द्वारा दक्ष की भर्त्सना, उनके विनाश की सूचना तथा समस्त देवताओं को यज्ञमण्डप से निकल जाने की प्रेरणा
- गणों के मुख से और नारद से भी सती के दग्ध होने की बात सुनकर दक्षपर कुपित हुए शिव का अपनी जटा से वीरभद्र और महाकाली को प्रकट करके उन्हें यज्ञविध्वंस करने और विरोधियों को जला डालने की आज्ञा देना
- प्रमथगणों सहित वीरभद्र और महाकाली का दक्षयज्ञ-विध्वंस के लिये प्रस्थान, दक्ष तथा देवताओं को अपशकुन एवं उत्पातसूचक लक्षणों का दर्शन एवं भय होना
- दक्ष के यज्ञ की रक्षा के लिये भगवान् विष्णु से प्रार्थना, भगवान् का शिवद्रोहजनित संकट को टालने में अपनी असमर्थता बताते हुए दक्षको समझाना तथा सेनासहित वीरभद्र का आगमन
- देवताओं का पलायन, इन्द्र आदि के पूछने पर बृहस्पति का रुद्रदेव की अजेयता बताना, वीरभद्र का देवताओं को युद्ध के लिये ललकारना, श्रीविष्णु और वीरभद्र की बातचीत तथा विष्णु आदि का अपने लोक में जाना एवं दक्ष और यज्ञ का विनाश करके वीरभद्र का कैलास को लौटना
- श्रीविष्णु की पराजय में दधीचि मुनि के शाप को कारण बताते हुए दधीचि और क्षुव के विवाद का इतिहास, मृत्युंजय-मन्त्र के अनुष्ठान से दधीचि की अवध्यता तथा श्रीहरि का क्षुव को दधीचि की पराजय के लिये यत्न करने का आश्वासन
- श्रीविष्णु और देवताओं से अपराजित दधीचि का उनके लिये शाप और क्षुव पर अनुग्रह
- देवताओं सहित ब्रह्मा का विष्णुलोक में जाकर अपना दुःख निवेदन करना, श्रीविष्णु का उन्हें शिव से क्षमा माँगने की अनुमति दे उनको साथ ले कैलास पर जाना तथा भगवान् शिव से मिलना
- देवताओं द्वारा भगवान् शिव की स्तुति, भगवान् शिव का देवता आदि के अंगों के ठीक होने और दक्ष के जीवित होने का वरदान देना, श्रीहरि आदि के साथ यज्ञमण्डप में पधारकर शिव का दक्ष को जीवित करना तथा दक्ष और विष्णु आदि के द्वारा उनकी स्तुति
- भगवान् शिव का दक्ष को अपनी भक्तवत्सलता, ज्ञानी भक्त की श्रेष्ठता तथा तीनों देवताओं की एकता बताना, दक्ष का अपने यज्ञ को पूर्ण करना, सब देवता आदि का अपने-अपने स्थानको जाना, सतीखण्डका उपसंहार और माहात्म्य
- तृतीय ( पार्वती ) खण्ड
- हिमालय के स्थावर-जंगम द्विविध स्वरूप एवं दिव्यत्व का वर्णन, मेना के साथ उनका विवाह तथा मेना आदि को पूर्वजन्म में प्राप्त सनकादि के शाप एवं वरदान का कथन
- देवताओं का हिमालय के पास जाना और उनसे सत्कृत हो उन्हें उमाराधन की विधि बता स्वयं भी एक सुन्दर स्थान में जाकर उनकी स्तुति करना
- उमादेवी का दिव्यरूप से देवताओं को दर्शन देना, देवताओं का उनसे अपना अभिप्राय निवेदन करना और देवी का अवतार लेने की बात स्वीकार करके देवताओं को आश्वासन देना
- मेना को प्रत्यक्ष दर्शन देकर शिवादेवी का उन्हें अभीष्ट वरदान से संतुष्ट करना तथा मेना से मैनाक का जन्म
- देवी उमाका हिमवान् के हृदय तथा मेना के गर्भ में आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, उनका दिव्यरूप में प्रादुर्भाव, माता मेना से बातचीत तथा नवजात कन्या के रूप में परिवर्तित होना
- पार्वती का नामकरण और विद्याध्ययन, नारद का हिमवान् के यहाँ जाना, पार्वती का हाथ देखकर भावी फल बताना, चिन्तित हुए हिमवान् को आश्वासन दे पार्वती का विवाह शिवजी के साथ करने को कहना और उनके संदेह का निवारण करना
- मेना और हिमालय की बातचीत, पार्वती तथा हिमवान् के स्वप्न तथा भगवान् शिव से मंगल-ग्रह की उत्पत्ति का प्रसंग
- भगवान् शिव का गंगावतरण तीर्थ में तपस्या के लिये आना, हिमवान् द्वारा उनका स्वागत, पूजन और स्तवन तथा भगवान् शिव की आज्ञा के अनुसार उनका उस स्थानपर दूसरों को न जाने देने की व्यवस्था करना
- हिमवान् का पार्वती को शिव की सेवा में रखने के लिये उनसे आज्ञा माँगना और शिव का कारण बताते इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देना
- पार्वती और शिव का दार्शनिक संवाद, शिव का पार्वती को अपनी सेवा के लिये आज्ञा देना तथा पार्वती द्वारा भगवान् की प्रतिदिन सेवा
- तारकासुर के सताये हुए देवताओं का ब्रह्माजी को अपनी कष्टकथा सुनाना, ब्रह्माजी का उन्हें पार्वती के साथ शिव के विवाह के लिये उद्योग करने का आदेश देना, ब्रह्माजी के समझाने से तारकासुर का स्वर्गको छोड़ना और देवताओं का वहाँ रहकर लक्ष्यसिद्धि के लिए प्रयत्नशील होना
- इन्द्र द्वारा काम का स्मरण, उसके साथ उनकी बातचीत तथा उनके कहने से काम का शिवको मोहने के लिये प्रस्थान
- रुद्र की नेत्राग्नि से काम का भस्म होना, रति का विलाप, देवताओं की प्रार्थना से शिव का काम को द्वापर में प्रद्युम्नरूप से नूतन शरीर की प्राप्ति के लिये वर देना और रति का शम्बर-नगर में जाना
- ब्रह्माजी का शिव की क्रोधाग्नि को वडवानल की संज्ञा दे समुद्र में स्थापित करके संसार के भय को दूर करना, शिव के विरह से पार्वती का शोक तथा नारद जी के द्वारा उन्हें तपस्या के लिये उपदेशपूर्वक पंचाक्षर मन्त्र की प्राप्ति
- श्रीशिव की आराधना के लिये पार्वतीजी की दुष्कर तपस्या
- पार्वती की तपस्याविषयक दृढ़ता, उनका पहले से भी उग्र तप, उससे त्रिलोकी का संतप्त होना तथा समस्त देवताओं के साथ ब्रह्मा और विष्णु का भगवान् शिव के स्थान पर जाना
- देवताओं का भगवान् शिव से पार्वती के साथ विवाह करने का अनुरोध, भगवान् का विवाह के दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करने पर स्वीकार कर लेना
- भगवान् शिव की आज्ञा से सप्तर्षियों का पार्वती के आश्रम पर जा उनके शिव विषयक अनुराग की परीक्षा करना और भगवान् को सब वृत्तान्त बताकर स्वर्ग को जाना
- प्रथम (सृष्टि) खण्ड
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